तीन राजकुमार और संतरे का पेड़ Motivational Story for Students in Hindi

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Motivational Story for Students in Hindi / मोटिवेशनल हिंदी कहानी 

Motivational Story for Students in Hindi

धीरज नगर राज्य के राजा आदित्य सिंह अपनी प्रजा के लिए एक प्रजावत्सल राजवी थे.

राजा आदित्य सिंह केवल अपने राज्य के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि अपने पड़ोसी राज्य के लिए भी एक मानवतावादी राजा की भूमिका निभा रहे थे.

पिछले वर्ष ही पड़ोसी राज्य में बरसात के मौसम में आई बाढ़ के कारण कई लोगों की जानें गई थी.

और राज्य को काफी नुकसान उठाना पड़ा था.

उस समय पड़ोसी होने के नाते राजा आदित्य सिंह ने वहां के राजा को बड़ी मात्रा में आर्थिक मदद की थी.

धीरज नगर की बात की जाए तो नगर के बच्चे बच्चे राजा आदित्य सिंह से खुश थे.

राजा की इतनी ज्यादा लोकप्रियता का मुख्य कारण यह था कि उन्होंने अपनी प्रजा से किसी भी प्रकार के कर यानी कि टैक्स नहीं लेने की प्रथा लागू की थी.

इतना ही नहीं बल्कि आर्थिक रूप से अशक्त परिवारों को राज परिवार की तरफ से आर्थिक सहाय भी की जाती थी.

असल में राजा आदित्य सिंह को धीरज नगर का शासन विरासत में मिला था.

आदित्य सिंह के पिता राजा प्रताप सिंह तथा उनके पिता उदित सिंह भी धीरज नगर के राजा रह चुके थे.

राजा आदित्य सिंह के पास धन – दौलत की कोई कमी नही थी.

धीरज नगर राज्य में तो ठीक इसके अलावा भी आस पडोस के राज्य में भी राजा के अनेक खेत और जमीनें थी.

ये ही वजह थी कि राजा अपनी प्रजा से किसी भी प्रकार का कर नही ले रहे थे.

राजा आदित्य सिंह के शासन से पूरे धीरज नगर की प्रजा खुश थी

राजा की चिंता .. / Motivational Story for Students in Hindi

लेकिन एक चिंता ने खुद राजा आदित्य सिंह को ही चिंता में डाल रखा था.

बात असल में यह थी कि राजा आदित्य सिंह को धीरज नगर में शासन करते हुए अब बहुत समय गुजर चुका था और राजा की उम्र भी अधेड़ हो चुकी थी.

इस वजह से राजा हमेशा इसी बात को लेकर चिंतित रहते थे कि अगर उनका देहांत हो जाए तो धीरज नगर की सत्ता कौन संभालेगा ?

वैसे तो राजा आदित्य सिंह के संतान में उनके 3 पुत्र थे.

लेकिन उन तीनों पुत्रों में से कौन सा पुत्र सत्ता संभालने योग्य है यह पता नहीं था.

आखिर राजा ने हींमत करके वजीर को अपनी समस्या बताई.

राजा ने वजीर से कहा कि इस समस्या का कोई ऐसा हल बताओ जिससे मेरी चिंता मिट जाए.

वजीर बुद्धिमान था उसने राजा से तीन दिन का वक्त मांगा.

तीन दिन बाद वजीर ने राजा आदित्य सिंह को सही उपाय बता दिया.

इस उपाय के अंतर्गत राजा आदित्य सिंह ने एक रोज अपने तीनों संतानों को अपने पास बुलाया.

राजा ने उनसे कहा कि ..

हमारे राज्य में संतरे का कोई पेड़ नहीं है. और मैं यह जानना चाहता हूं कि संतरे का पेड़ कैसा होता है ? 

इसलिए तुम तीनों किसी ऐसी जगह पर जाओ जहां संतरे के पेड़ लगे हो. और पेड़ का ठीक अवलोकन कर के मुजे उसके बारे में बताना.

लेकिन इस काम के लिए तुम तीनो एक साथ नही जाओगे.

बल्कि सब चार-चार महीने के अंतराल में बारी बारी से जाओगे और इस तरह एक साल के बाद मुजे अपना खोज परिणाम बताओगे.

तीनों पुत्रों की यात्रा ..

राजा आदित्य सिंह और वजीर की बनाई योजना के अनुसार सबसे पहले तीनों पुत्रों में से बड़े पुत्र ने राजा से आज्ञा लेकर अपनी खोज शुरू की और सफर पर निकल पड़ा.

उसने चार महीने अलग-अलग कई राज्यों में यात्रा की और जहां-जहां संतरे के पेड़ उगे हुए थे वहां जाकर अवलोकन किया.

अंत में चार महीने के बाद वह अपने पिता राजा आदित्य सिंह के पास वापस लौटा.

अब राजा के दूसरे के बेटे की बारी थी.

उसने भी राजा से आज्ञा लेकर अपना सफर शुरू किया.

वह भी अपने बड़े भाई की तरह अलग अलग राज्य और जगह की यात्रा करके संतरे का पेड़ ढूंढता रहा और उसका अवलोकन करता रहा.

आखिर में चार महीने की यात्रा करने के बाद वह भी वापस अपने राज्य में लौटा.

ऐसे होते होते आठ महीने हो चुके थे.

और राजा ने बेटों को जो समय मर्यादा दी थी उसके अब आखरी चार महीने ही बाकी थे.

अब राजा आदित्य सिंह का सबसे छोटा बेटा अपने दोनों भाइयों की तरह संतरे के पेड़ का अवलोकन करने हेतु यात्रा के लिए निकला.

उसने भी अपने दोनों भाइयों की तरह अलग-अलग राज्यों और बगीचों की मुलाकात लेकर संतरे के पेड़ के बारे में जानकारी इकट्ठी की. चार महीने बाद वो भी वापस अपने राज्य में आ गया.

अवलोकन के परिणाम ..

तीनों बेटों के अपने अपने संशोधन को पूर्ण कर लेने के बाद राजा ने उसे फिर एक साथ बिठाया.

और संतरे के पेड़ के बारे में अपने-अपने अनुभव बताने के लिए कहा.

सबसे पहले बड़े पुत्र ने राजा आदित्य सिंह से बताया कि ..

संतरे का पेड़ एक प्रकार से बेकार पेड़ होता है. मैंने देखा कि उसमें ना ही कोई पत्तीयां होती है और ना ही कोई फल.

वो दिखने में एक सूखा हुआ तना लग रहा था बस.

इसके बाद राजा ने अपने मझले बेटे को अपना अनुभव बताने के लिए कहा.

उसने बताया कि ..

मेरे बड़े भाई ने संतरे के पेड़ बारे में जो कहा हकीकत उससे बिल्कुल अलग है.

संतरे का पेड़ बिल्कुल अन्य पेड़ जैसा ही होता है और उसमें पत्तियां भी होती है.

इतनी ज्यादा कि पूरा पेड़ हरा-भरा लगता है. हालांकि उसमें फल नहीं आता यही एक कमी है.

आखिर में राजा के सबसे छोटे बेटे की बारी थी.

उसने संतरे के पेड़ के बारे में अपना अनुभव बताते हुए कहा कि ..

मेरे दोनों भाइयों ने शायद संतरे के पेड़ के बजाय अन्य कोई पेड़ का अवलोकन कर लिया है.

मैंने देखा कि संतरे का पेड़ पत्तियों से बिल्कुल हरा भरा होता है.

और उसमें रंग और स्वाद से भरपूर फल भी आता है.

राजा ने बताई जीवन की सीख

राजा ने तीनों पुत्रों की बात सुनकर बताया कि ..

असल में तुम तीनों ने संतरे का पेड़ ही देखा है और उसी का ही अवलोकन किया है.

लेकिन मैंने तुम्हें अलग-अलग समय और ऋतु में उसका अवलोकन करने को कहा इसलिए तुमने जो देखा उसे ही सच मान लिया.

मैंने जानबूझकर ऐसा किया ताकि तुम्हें जीवन की कुछ सच्चाईयों के बारे में अवगत करा सकूं.

इससे तुम्हें तीन सीख मिल रही है.

1). सबसे पहली यह बात सीखने की है कि कभी भी किसी व्यक्ति या वस्तु को एक बार देखकर या जांच कर उसके बारे में जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकती.

बल्कि उसकी सही जानकारी प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक अवलोकन करना पड़ता है.

2). दूसरी सीख ये की जैसे मौसम हमेशा एक जैसा नहीं रहता वैसे हमारी जिंदगी में भी परीस्थिति एक समान नहीं रहती.

जैसे मौसम में संतरे का पेड़ कभी सुखा, कभी हरा-भरा और कभी फलदार हो जाता है.

वैसे ही हमारी जिंदगी में उतार-चढ़ाव, सुख दुख और सफलता असफलता के प्रभाव भी आते हैं.

ऐसे में हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और धैर्य से काम लेना चाहिए.

बुरा वक्त भी मौसम की तरह गुजर जाएगा.

3). तीसरी सीख ये की जब तक हम सामने वाले के बारे में पूरा सच नहीं जानते तब तक उससे विवाद नहीं करना चाहिए.

क्योंकि सभी मामले के दो पहलू होते हैं.

इसलिए पहले हमें उसकी बात सुननी और समझनी चाहिए. इससे हमारे ज्ञान में बढ़ोतरी होती है.


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