- स्कूलस्कूल कोन की परंपरा
- जर्मनी में शुरू हुआ था रिवाज
- दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भी जारी रही ये परंपरा
हमारे यहां बच्चों को स्कूल में एडमिशन दिलवाने या उसके स्कूल के पहले दिन को लेकर बहोत ज्यादा गंभीरता नही ली जाती.
जबकि जर्मनी में बच्चों को स्कूल के पहले दिन कार्डबोर्ड से बने हुए “स्कूल कोन” गिफ्ट किए जाते है. हांलाकि इस स्कूल कौन को स्कूल जाने वाले विद्यार्थी के माता पिता या उसके घर वाले ही तैयार करते हैं.
लेकिन अच्छी तरह से डेकोरेट किए गए इस कार्डबोर्ड में तरह-तरह की मीठी चीज जैसे कि चॉकलेट वगैरह होती है. साथ ही इसमें स्टेशनरी का सामान और छोटे-छोटे खिलौने भी होते है.
पिछली दो सदियों से जर्मनी का इतिहास काफी उथल-पुथल रहा है. इसके बावजूद विश्व युद्ध के दौरान भी बच्चों को ऐसे कोन देने की परंपरा कायम रही थी.
उस समय में अगर स्कूल जाने वाले बच्चों के मां-बाप या घर वाले की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती तो वह इस “स्कूल कोन” में आलू गिफ्ट करते थे और अगर उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो तो कोन में कुछ गिफ्ट आइटम भरे जाते थे.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी दो हिस्सों में विभाजित हो गया था. जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक और फेडरल रिपब्लिक या वेस्ट जर्मनी.
स्कूल कोन के आकार
वेस्ट जर्मनी में बच्चों को दिए जाने वाले स्कूल कोन गोलाकार आकार के होते थे. जबकि ईस्ट जर्मनी में दिए जाने वाले कोन अंग्रेजी के V अक्षर के आकार के होते थे. हालांकि अन्य स्थानीय जगहों पर इसका आकार अलग-अलग भी होता है.
जर्मन की इतिहास को जानने वाले विश्लेषकों का कहना है कि बच्चे का स्कूल का पहला दिन बहुत ही यादगार होता है और उसे यादगार बनाने के लिए ही जर्मनी में अधिकतर मां-बाप “स्कूल कोन” कि ये परंपरा निभाते है.
कहा जाता है कि वर्ष 1781 में इस परंपरा का उल्लेख हुआ था और तब इसमें ड्राई फूड भी रखा जाता था.
आपको नही लगता हमारे यहां भी ऐसी कोई परंपरा शुरू करनी चाहिए जिससे स्कूल के प्रति बच्चों में पहले दिन से ही उत्साह हो.
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